युग युग सूं अखियां तरस रही । पग पग पर अखियां रोई रही ।। मायण थारो पूत कठे, वो सोलंकी रो सरदार कठे, वो राणा पूंजा कठे भील समाज के लोग इन्हें अपन
युग युग सूं अखियां तरस रही । पग पग पर अखियां रोई रही ।। मायण थारो पूत कठे, वो सोलंकी रो सरदार कठे, वो राणा पूंजा कठे भील समाज के लोग इन्हें अपन