कितने अरमां हैं मेरे बता दूँ अगर तुम लगा कर ज़माने को ठोकर फिर दिल-ए-बेताब की ख़ातिर हवाओं को बना कर हम-सफ़र यार कभी इधर तो कभी उधर दि
कितने अरमां हैं मेरे बता दूँ अगर तुम लगा कर ज़माने को ठोकर फिर दिल-ए-बेताब की ख़ातिर हवाओं को बना कर हम-सफ़र यार कभी इधर तो कभी उधर दि